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Dear Aloka Tell us, what should be done by those who belongs to out of Jharkhand? we are with your struggle pl. send us detail of your struggle. ambarish rai president, lok sangharsh morcha (LSM)
विस्थापन के "िाकार दुमका के आदिवासी अलोका अपने परम्परागत सामुदायिक तौर तरीकों एवं पेसा द्वारा प्रदत्त अधिकारों-प्रावधानों के तहत ग्राम सभा के मांझी- परगैनत बैठको के निर्णय के अनुसार दुमका जिले के काठीकुण्ड ब्लाक के आमगाछी एवं पोरवारिया गांव के आदिवासी अपने जल-जंगल-जमीन की रक्षा तथा अपनी जीविका एवं आस्तित्व की रक्षा के लिए अप्रैल 2008 से संघर्'ा करने को बाध्य कर दिये गये हैं। इस संघर्'ा की "ाुरूआत तब हुई जब यह पता चला कि सी.ई.सी.ई कम्पनी (आर.पी. गोयनका गु्रप) आमगछी एवं पोखरिया गांव में 4000 करोड़ रूपये की लागत से एक थर्मल पावॅर प्लांट लगाने जा रही है जिससे 1000 मेगावाट बिजली उत्पादित होगी। गांव की 1000 एकड़ जमीन पावर प्लांट के ली जायेगी। आगे चलकर यह भी पता चला कि प्लांट की जरूरत के लिए एक डैम भी बनाया जायेगा तथा कोयले की माइनिंग भी की जायेगी। ग्रामवासी अभी इन सूचनाओं की असलियत जानने की प्रयास की कर रहे थे कि भू-अधिग्रहण विभाग ने अ्रपैल 2008 में दोनो गाॅवों के लोगो को सामूहिक रूप अपनी जमीने देने के लिए कहा परंतु दोनो गाॅव के लोगों ने सामूहिक रूप जमीनें देने से मना कर दिया। फिर लोगों को व्यक्तिगत नोटिस दी गयी उसका भी लोगों ने नकारात्मक जवाब ही दिया। 17 अ्रपैल 2008 को परम्परागत एवं वैधानिक रूप से मान्य आदिवासियों की मोड़े- मांझी मीटिंग (आमगाछी गाॅंव) का आयोजन करके 4-5 स्थानीय भू-माफिआओं को चिन्हित किया गया और तय पाया गया कि इनका सामाजिक बहि'कार किया जायेगा तथा कोई भी इनको अपनी जमीनें नहीं बेचेगा। 5 वीं अनुसूची एवं पेसा एक्ट के तहत प्रावधानोें के तहत इस तरह की बैठकों में कोई भी सरकारी कर्मचारी "ाामिल नहीं हो सकता को ठेंगा दिखाते हुए पी. आई. टोपो बलात इस बैठक में आ धमके। आदिवासियों ने इस पर आपत्ति की। बाद में इसी पी.आई. ने मीडिया से कहा इस बैठक में उसे बंधक बना लिया गया और एक बाण्ड पेपर पर हस्ताक्षर करवाया गया कि वह इस गाॅंव में अब नहीं आयेगा। 909 ग्राम वासियों के ऊपर सरकारी कार्य में व्यवधान डालने का झूठा आरोप लगाते हुए आई. पी.सी. की धारा 147, 148, 149, 353, 452, 188, 427, 504, 341, 342 एवं जी पी डी पी एक्ट की धारा 3 के तहत प्राथमिकी दर्ज की गयी। इसके बाद होपना बासकी ( ग्राम प्रधान फुलु मराण्डी के पति) एवं उलगुलाल मंच के राज्य संयोजक चरन कुमार की गैर कानूनी गिरफतारी की गयी ।इन गिरफतारियों का विरोध 19 अगस्त 2008 से तमाम स्थानों पर होने लगा जिसमें मधुपुर, रांची, दुमका, गिरीडीह, धनबाद, बोकारों, पं. सिंहभूम, जम"ोदपुर, साहेबगंज जैसे स्थान "ाामिल थे। ये सभी धरना, प्रदर्"ान "ाांतिपूर्ण रहे थे और 21-25 अगस्त तक दुमका पुलिस स्टे"ान का "ाांतिपूर्ण ढंग सं घेराव किया गया। इस घेराव के दरम्यान 23 अगस्त को मीडिया के सामने लोगों ने अपनी ज+मीनें खाली न करने की लिखित घो'ाणा जिलाधिकारी को सौंपी। जिस पर जिलाधिकारी ने कहा कि वे इन कागज+ों को संबंधित विभाग को अग्रसारित कर देंगे। लोगों ने लगभग 7000 की तादाद में जेल भरो अभियान (प्रथम हुल) के तहत स्वंय अपनी पत्नियों, बच्चों को गिरफतारी हेतु एस.पी. दुमका के समक्ष प्रस्तुत करते हुए कहा कि यदि हमारे 909 ग्रामवासियों को वैधानिक रूप से मान्य मोड़-माझी बैठक में "ाामिल होने को अपराध घो'िात किया जा रहा है तो हम भी उस अपराध में "ाामिल हैं। हमें भी गिरफतार करके जेल भेजा जाय। इस भारी जन आक्रो"ा के परिणाम स्वरूप सी.जे.एम. ने होपना एवं चरन को 25 अगस्त को जमानत पर रिहा कर दिया। लेकिन समस्या यहीं पर समाप्त नहीं हुई। 26 अगस्त को 7000 प्रदर्"ानकारियों में से 320 पर पहली वाली तर्ज पर ही फर्जी मुकदमा दर्ज कर दिया गया। आंदोलन में सक्रिय कार्यकर्ताओं - नेताओं मुन्नी हाँसदा, अन्नी टुडु, भीमलाल साहू, बांकु, सुनीता, जोनाथन, बाबूलाल, राज चरन, राजे"ा एवं अन्य को पुलिस ने नि"ााने पर लिया। 27 नवंबर 2008 को बाबूलाल को गिरफतार किया गया और उसी तरह चरन कुमार, होपना बासकी और मुन्नी हाँसदा को काठीकुण्ड थाने से मोटर साइकिल लूटने के फरजी मुकदमे में फँसाकर गिरफतार कर लिया गया। इसके बाद ग्राम वासियों ने 'जनता-कर्यू' का ऐलान किया जिसके अंतर्गत किसी भी सरकारी अधिकारी - कर्मचारी को गाँव में न घुसने देने का ऐलान किया गया। स्थानीय आंदोलनकारी संगठन - हुल गुलाल मंच ने ऐलान किया कि दूसरा 'हुल' और 'जेल भरो अभियान' 6 दिसंबर 2008 से दुमका से "ाुरू होगा। 6दिसंबर 2008 को "िाकारीपदा में ग्रामवासी एकत्रित हुए, एकाएक पुलिस हरकत में आयी, दुमका की सीमाओं को सील कर दिया गया और पुलिस अधिकारियों से कहा गया कि दुमका जाने वाले एक एक व्यक्ति की ताला"ाी ली जाय। लोग दुमका की तरफ "ाांतिपूर्ण ढंग से बढ़ रहे थे। 6 दिसंबर 2008 को दुमका से 30 कि.मी. एवं काठीकुड पुलिस थाना से 3 कि.मी. पहले हरीपुर नाका पर जुलूस को रोक कर पुलिस ने 80 राउण्ड गोलियां चलायीं। एक प्रदर्"ानकारी आदिवासी लुखीराम टुडू घटना स्थन पर मारा गया एवं रावन सोरेन, साइगत मराण्डी अस्पताल में जीवन-मरण के बीच जूझ रहे हैं तथा अन्य 15 आदिवासी गंभीर रूप से घायल हैं। च"मदीद लोगों का कहना है कि पुलिस ने अपने वाहन को आग केे हवाले कर दिया और ऐसे प्रदर्"ानकारियों का 'नक्सलाइट' 'माओवादी' कहकर बताने लगे जिन्होंने पुलिस के ऊपर कभी भी कोई फायर तक नहीं किया है - घायल करना तो दूर रहा। इसके बाद भीमलाल साहू एवं जोनाथन को गिरफतार कर लिया गया और उन पर 21-25 अगस्त 2008 के धरने में "ाामिल होने का आरोप लगाया गया। पुलिस झूठ-मूठ यह भी कह रही है कि उनके पास से उत्तेजक नक्सलवादी साहित्य बरामद हुआ है। अभी दुमका जेल में 7 आंदोलनकारी बंद हैं। पुलिस आंदोलनकारियों के घरों एवं कार्यालयों पर छापे डाल कर आतंक पैदा कर रही है। इन संगठनों में उलगुलाल मंच एवं हुल गुलान महिला मंच "ाामिल हैं। इस घटना पर 7 दिसंबर 2008 को अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए डिप्टी चीफ मिनिस्टर स्टीफन मराण्डी ने कहा कि 'उलगुलान मंच' का विस्थापन या स्व"ाासन से कुछ लेना देना नहीं है। मंच लोगों को बेवकूफ बना रहा है तथा अपना उल्लू सीधा कर रहा है।
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